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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’: एक युग की ओजपूर्ण आवाज़

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’: एक युग की ओजपूर्ण आवाज़

बिहार, 23 सितंबर: हिंदी साहित्य के आकाश में ओज, वीरता और राष्ट्रभक्ति की लौ जलाने वाले कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की आज जन्मतिथि है। बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में 1908 में जन्मे दिनकर न केवल कवि थे, बल्कि वे एक चिंतक, स्वतंत्रता सेनानी और संसद सदस्य भी रहे।

गरीबी में जन्म लेने के बावजूद दिनकर ने शिक्षा से समझौता नहीं किया। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और पढ़ाई के दौरान ही राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित होकर कविताएं लिखनी शुरू कीं। उनकी कविताओं में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह, जनता का आक्रोश और आत्मसम्मान की भावना स्पष्ट रूप से झलकती है।

उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में ‘रश्मिरथी’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ और ‘हुंकार’ जैसे ग्रंथ शामिल हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। ‘रश्मिरथी’ में कर्ण के चरित्र के माध्यम से उन्होंने सामाजिक न्याय और संघर्ष की भावना को प्रस्तुत किया।

1952 से 1964 तक दिनकर राज्यसभा के सदस्य रहे। साहित्य और समाज में उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें 1959 में ‘पद्म भूषण’ और 1972 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से नवाज़ा गया।

24 अप्रैल 1974 को इस ओजस्वी कवि का निधन हो गया, लेकिन उनकी कविताएं आज भी युवाओं को राष्ट्रभक्ति और साहस का संदेश देती हैं। दिनकर केवल कवि नहीं, बल्कि विचारों के योद्धा थे, जिन्होंने कलम से क्रांति की मशाल जलाई।

रिपोर्ट Sunish K Thakur

 

 

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