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आखिर राजनगर को , पर्यटन स्थल का दर्जा कब मिलेगा?

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आखिर राजनगर को , पर्यटन स्थल का दर्जा कब मिलेगा?

प्रदीप कुमार नायक
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार

 

“आलोकित पथ करो हमारा, तिमिर हरो कर दो उजियारा,माँ मुझको तुम भूल न जाओ”। माँ काली,माँ दूर्गा,कामाख्या, गिरिजा,राधा कृष्ण,शिव शंकर एवं हनुमान जी का मंदिर नूतन वर्ष के मौके पर गुलज़ार रहा।लोंगो ने काफी बढ़ चढ़कर राजनगर राज पैलेस स्थित मंदिर में दर्शन कर अपने कार्य में साथ होने का आशिष देवी-देवताओं से मांगा।एक तरफ भक्तों ने देवी एवं देवताओं के दर्शन पाने की आतुरता तो दूसरे तरफ क्या बूढ़े,क्या बच्चे, क्या नौजवान,क्या महिलाएं सभी लोग इर्द-गिर्द पिकनिक मनाने में मशगुल थे।नजारा काफी आनंदातिरेक था।भक्तों की अपार भीड़ देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि चाहे भ्रष्टाचार, व्यभिचार, लूट-खसोट चाहे कितनी भी बढ़ी हो।लेकिन भक्ति भाव में सबकी आस्था व्यापक हैं।
: बताते चलें कि मधुबनी जिले के राजनगर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर पर्यटन और पिकनिक स्थल के रूप में विकसित एवं विख्यात हो सकता हैं।विकास के नाम पर एक ऐतिहासिक व पर्यटकीय दृष्टि से सुंदर,शान्त, पवित्र,मंदिरों से घिरा स्थल राजनगर का राज पैलेस हैं जहां कई मैथिली,भोजपुरी फ़िल्म के अतिरिक्त्त कई टेली फ़िल्म की शूटिंग हो चुकी हैं।
प्रकृति की खूबसूरत वादियों में बसा राजनगर का राज पैलेस न केवल महान धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक स्थल हैं,बल्कि इस स्थल से मधुबनी जिला सहित सम्पूर्ण बिहार के हजारों लोंगो की धार्मिक आस्था और मान्यताएं जुड़ी हैं।यूं तो यहाँ प्रतिदिन लोग पूजा करने आते है।लेकिन नव वर्ष के अवसर पर यहाँ हजारों की संख्या में लोग पिकनिक मनाने व घुमने आते हैं।वही दूर्गा पूजा में यह दस दिनों तक दर्शनार्थियों का विशाल मेला लगता हैं।अगर इस पर सरकार का ध्यान पड़ता हैं तो यह एक आदर्श पर्यटन और पिकनिक स्थल के रूप में विकसित और विख्यात हो सकता हैं।
राजनगर राज पैलेस वाकई अपनी ऐतिहासिक गतिविधियों के लिए जाने जाने वाली हमेशा से दिल वालों की रही हैं।फिर चाहे वह आदिकाल की बात हो या आजकी।वे विरले दिल वाले ही थे जिन्होंने इस पैलेस को ऐसी ऐतिहासिक इमारतें, स्मारकें, मंदिर आदि धरोहर सौगात के रूप में दी।जो पर्यटन इतिहास को अमर बनाती हैं।इन धरोहर का इतिहास भी उतना ही रोचक हैं।जितना कि यह खूबसूरत हैं।
प्राचीन काल में राज पैलेस के कुछ भाग अति महत्वपूर्ण रहे हैं।लेकिन जीवन में संस्कृति की रंग बिरंगी छटा से भरपूर जीवन दर्शन से रूबरू कराने वाली कलात्मक मंदिर व मनोहारी भित्ति चित्रों, नौलखा,स्वच्छ जल पोखरा के कारण दर्शनार्थियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा हैं।राज पैलेस का माँ काली मंदिर सबसे बेहतर स्थिति वाले मन्दिरों में गिना जाता हैं।पैलेस के बीच में इस भव्य और विशाल मन्दिर को देखकर लगता है कि कोई पहाड़ खड़ा हैं।स्थापत्य की नजर से देखे तो यह मन्दिर सबसे भव्य आकर्षण लिये हुये हैं।मन्दिर का ऊँचा शिखर दूर से ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं।
यह मन्दिर सम्पूर्ण मिथिलांचल के मुख्य आकर्षण में से एक हैं।संगमरमर के खूब सूरत पथ्थरों से बना यह भव्य मन्दिर स्थापत्य कला का जीता जागता प्रमाण हैं।मन्दिर के कुछ भागों में की गई नक्काशी यहाँ के जन जीवन को कलात्मक रूप से दर्शाया गया है।राजनगर राज पैलेस के अहाते में विश्वेश्वर सिंह जनता महाविधालय से सटे कुछ ही दूर पर राज परिसर में प्रवेश करते ही वहाँ प्रकृति की खूब सूरत मनोरम छटा के बीच बसे इस स्थल को देखकर लोग बरबस आकर्षित हो जाते हैं।मन्दिर के आगे पीछे हरे भरे पेड़ पौधों से आच्छादित खूब सूरत दीवारों के बीच में भव्य और आकर्षक आगे पवित्र गंगा सागर पोखरा की कल कल छल छल करती जल धारा के चारो ओर खड़े विशाल मन्दिर यहाँ का मुख्य आकर्षण हैं।. अदभूत प्रकृतिक छटा, मनोरम दृश्य, ऐतिहासिक, पौराणिक,धार्मिक महत्ता और इसके साथ खाली पड़ा विशाल भू-भाग इसके पर्यटन और पिकनिक स्थल के रूप में विकसित और विख्यात होने की संभावनाओ को स्पस्ट परिलक्षित कर रहा हैं।इस स्थल को देखकर सहसा ही यह विश्वास नहीं होता कि प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण कलात्मक मंदिरों वाला यह स्थल वास्तव में इतनी सुन्दर कैसे हैं।
यूं तो पैलेस के मन्दिर की बनावट में वास्तुशिल्प की दृष्टि से आंतरिक समानता ही अधिक देखने को मिलती हैं।लेकिन माँ काली मन्दिर का नयना भिराम वास्तु संयोजन और स्थापत्य भक्तों को विशेष रूप से आकर्षित करता है।मंदिरों में भक्तों के विशेष आकर्षण का केन्द्र बनने वाले माँ काली मन्दिर का निर्माण वर्ष लगभग 1926 में महाराज रामेश्वर सिंह ने करवाया था।सफेद संगमरमर से बना और खूब सूरत से अलंकृत यह मन्दिर इस पैलेस में स्थित सभी मंदिरों से अच्छी हालत में है।जो कमला कालिका की पंखुड़ियों की सहज याद दिलाते हैं।मन्दिर के बरामद की छत पर लघु आधार स्तंभो से विभाजित रेलिंग लगाई गई हैं।चारों तरफ बने बरामदे के स्तंभ सादे हैं।लेकिन इसका शीर्ष अलंकृत हैं।बरामदे के आकार के अनुरूप खुला चबूतरा भी मन्दिर के सौंदर्य को चार चांद लगाता है |. इस मन्दिर में शिव की छाती पर पग धरे माँ काली की अत्यन्त मनोहारी प्रतिमा विराजमान हैं।माँ काली मन्दिर की छत का आंतरिक अलंकरण न सिर्फ सौंदर्य के लिहाज से बल्कि तांत्रिक महत्व के लिए भी उल्लेखनीय हैं।मुख्य द्वार के सामने की छत का भीतरी हिस्सा अनेक प्रतीकों से युक्त हैं।मन्दिर के सामने एक घंटा बना हुआ हैं।कहते है कि किसी जमाने मे संध्या वंदन के समय जब पुजारी इसे बजाना शुरू करते थे तो घंटे की आवाज़ सुनकर बंदरों व गीदड़ों का झुंड यहाँ माँ का प्रसाद पाने के लिए एकत्रित हो जाया करता था।लेकिन आज ऐसा नहीं है।वैसे जब भी कोई यहाँ मन्नत माँग कर घंटा बजाता हैं तो उसकी अभिलाषा की संकेत ध्वनि सहज ही पूरे परिसर में गूंज उठती हैं।यहाँ लोग मन्नतें मांगते हैं और भगवान की कृपा से उनकी मुरादे भी पूरी होती हैं।खासकर इस क्षेत्र के लोगों की यहाँ से गहरी आस्था जुड़ीं हैं।यह मन्दिर सम्पूर्ण मिथिलांचल का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।राज पैलेस के एक कोने में अवस्थित यह मन्दिर सबसे सुन्दर एवं शान्त नज़र आता हैं।
इसके अलावे माँ दुर्गा मन्दिर राजनगर का सबसे पुराना मंदिरों में एक माना जाता हैं।यह भी देवी दुर्गा भवानी का मंदिर हैं।जो बड़ी गेट से कुछ आगे पर अवस्थित हैं।यहाँ दुर्गा पूजा के अवसर पर बड़ी धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती हैं तथा दस दिनों तक लगातार मेला भी लगता हैं।नौलखा भी पैलेस के बीच में अवस्थित हैं।जो प्रथम भूकम्प के समय तीन हिस्सा नीचे धस गया बाकी का हिस्सा क्षतिग्रस्त अवस्था में आज भी मौजूद हैं।नौलखा किला वास्तुकला की नायाब मिशाल हैं ।इसका उपरी भाग आज भी सुरक्षित हैं।
कामाख्या मन्दिर भी पैलेस के अति प्राचीन मंदिरों में एक हैं।इस मंदिर में घुमावदार एक सीढ़ी भी हैं।जिसके छत पर खड़े होकर देखने से अनेकों दृश्य प्रकृति के इस रमणीय दृश्य में खोए रहते हैं।चुम्बक की तरह आकर्षित करने वाली पोखरा के ठीक सामने हनुमान मन्दिर दर्शनार्थियों का मन मुग्ध कर देता हैं।जिसे दूर से ही देखने से पता चलता है कि स्वंय हनुमान जी विराजमान हैं।
: इसके अलावे राज परिसर में राधा कृष्ण मन्दिर, गिरिजा मन्दिर आकर्षक का केन्द्र है।गिरिजा मन्दिर से कुछ दूरी पर शिव का साक्षात मन्दिर अवस्थित हैं। पत्थर से बना चार हाथियों के ऊपर महल भी अपने आप में एक मिशाल हैं।इसके अनुरूप पैलेस में अनेकों दर्शनीय स्थान हैं।इस पैलेस की विशेषता और आकर्षण यहाँ के मन्दिर और मठ ही हैं।हर कदम पर यहाँ आप किसी मन्दिर का दरबाजा देख सकते हैं।पैलेस की जमीन अपनी कलात्मक प्राचीन वास्तुकला के लिए काफी मशहूर हैं।राजनगर के आसपास कई दर्शनीय स्थल भी हैं।पैलेस से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित बाबा भूतनाथ का भव्य मन्दिर भी दर्शनार्थियों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं।
राजनगर राज पैलेस के सभी महत्वपूर्ण मन्दिर एवं स्थलों का सभ्यक विकास और उचित रख रखाव नहीं होने के कारण ये स्थल न तो आदर्श पर्यटन और पिकनिक स्थल के रूप में स्थापित हो पा रहा हैं और न ही विख्यात । जबकि इन सभी स्थलों में पिकनिक और पर्यटन स्थल बनने की असीम संभावनाएं है|. अगर सरकार और जिला प्रशासन के साथ साथ जिले और प्रदेश के राजनीतिक ,सामाजिक, सांस्कृतिक, स्वंयसेवी संगठन और समाज के जिम्मेदार लोग इस दिशा में सकारात्मक पहल करें तो ये सभी स्थल ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक स्थलों के रूप में माने जाने के अलावा आदर्श पर्यटन और पिकनिक स्थल के रूप में स्थापित और विख्यात हो सकता हैं।
मैं प्रदीप कुमार नायक ” स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार ” इससे पूर्व अनेकों बार प्रमुखता से इस खबर को “अदभूतकारी हैं राज पैलेस”,राजनगर में पर्यटन की स्थिति एवं संभावनाएं ”,राजनगर में पर्यटन की असीम संभावनाएं” शीर्षक के नाम से कई पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था।जिसका आशातीत सफलता मिलती अभी तक नहीं दिख रही हैं।
जहां एक ओर सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से करोड़ो-अरबों रुपए पानी की तरह बहाये जा रहें हैं।लेकिन अब तक इस धरोहर को सहेजने के लिये सरकार या पर्यटन विभाग ने माकूल कदम नहीं उठाए हैं।साथ ही जन प्रतिनिधियों का भी पावन कर्तव्य बनता हैं कि वे इस मुद्दें पर गहनता पूर्वक विचार करें, ता कि जिले में एक मात्र दर्शनीय स्थल राजनगर राज पैलेस को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग रखें।

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