
मुजफ्फरपुरः पुण्यतिथि पर साहित्य भवन में बाबा नागार्जुन को दी गई श्रद्धांजलि
नागार्जुन की साहित्यिक संवेदना कबीर और निराला की परंपरा की है। अल्हड़, फक्कड़ और बेबाक नागार्जुन की रचनाएं सत्ता और सामंतवाद के खिलाफ आवाज उठाती हैं व उनसे तीखे सवाल करती है। व्यंग उनके व्यक्तित्व में स्वभावतः सम्मिलित था। कांटी नगर परिषद स्थित साहित्य भवन में बैद्यनाथ मिश्र नागार्जुन की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने ये बातें कही। आयोजन नूतन साहित्यकार परिषद की ओर से किया गया। उन्होंने कहा कि नागार्जुन ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज व राजनीतिक विसंगतियों पर दो टूक प्रहार किया। जनपदीय संस्कृति व लोक जीवन उनकी कथाओं में झलकता है। उन्होंने गरीब,मजदूर, किसान की पीड़ा को मुखर रूप से आवाज दी। स्पष्टवादिता व राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
सेवानिवृत शिक्षक परशुराम सिंह ने कहा कि लोक जीवन,प्रकृति व समकालीन राजनीति नागार्जुन रचनाओं का मुख्य विषय रहा। नूतन साहित्यकार परिषद ने कांटी में साहित्यिक गतिविधियों को जीवंत रखा है। इसके लिए अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र धन्यवाद के पात्र हैं।
स्वराजलाल ठाकुर ने नागार्जुन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नागार्जुन की रचनाएं प्रगतिवादी, जनवादी व यथार्थवादी हैं। उन्होंने मैथिली, संस्कृत व बंगला में भी रचनाएं लिखीं।
चंद्रकिशोर चौबे ने कहा कि नागार्जुन ने अपनी कविताओं के जरिए जनकवि का दर्जा प्राप्त किया। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों के उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर नमन किया। धन्यवाद ज्ञापन पिनाकी झा ने किया। कार्यक्रम में नागार्जुन को नंदकिशोर ठाकुर, मनोज मिश्र,रोहित रंजन,दिलजीत गुप्ता,प्रकाश कुमार ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की।