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पटना के गंगा घाट पर छठ के लोकगीतों का ‘फ्यूजन’, खूब पसंद कर रहे लोग

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पटना के गंगा घाट पर छठ के लोकगीतों का ‘फ्यूजन’, खूब पसंद कर रहे लोग

पटना के NIT घाट पर युवा गिटार के साथ छठ के दिव्य गीत गा रहे हैं. उनका ये ‘फ्यूजन’ काफी मंत्रमुग्ध करने वाला है-

पटना : बदलते समय के साथ-साथ संगीत का ट्रेंड भी बदल रहा है. ढोलक झाल पर होने वाला छठ गीत हारमोनियम पर लोकप्रिय हुआ, लेकिन अब युवाओं के बीच छठ गीतों का फ्यूजन पटना के गंगा घाट पर देखने को मिल रहा है. कई युवा प्रतिदिन पटना के एनआईटी घाट पर आते हैं, रॉक और जैज़ एलिमेंट्स का प्रयोग करते हुए लोक गीतों का फ्यूजन करते हैं. ऐसे में अब जैसे-जैसे छठ का समय नजदीक आ रहा है, युवाओं में छठ गीत को लेकर उत्साह भी देखने को मिल रहा है. गिटार पर लोकगीतों का फ्यूजन करने वाले युवा छठ के पुराने लोकगीतों को गिटार पर गा रहे हैं और आसपास सुनने वालों की भीड़ लग जा रही है. लोग भी यह संगीत काफी पसंद कर रहे हैं क्योंकि गीत में शब्दों का हेरफेर नहीं होने से भावनाएं वहीं रह रही हैं.

गिटार पर छठ गीत का फ्यूजन : अमूमन एनआईटी घाट पर दो दोस्त यशराज और अंशु सिंह गिटार लेकर आते हैं और लोकगीतों का फ्यूजन करते हैं. आसपास के युवा कोर्स के लिए उनके साथ में बैठ जाते हैं और आनंदित होते हैं. कुछ गीत के भागीदार बनते हैं तो कुछ श्रोता बनाकर दूर से देखते हैं, सुनते हैं. गिटार लेकर गंगा घाट पर छठ के लोकगीतों को गा रहे युवक अंशु सिंह ने बताया कि वह भी स्नातक में पढ़ाई करते हैं और म्यूजिक उनका पैशन है.

‘आज के दौर में गिटार और पियानो वाद्य यंत्र के रूप में म्यूजिशियन की पसंद है, ऐसे में इन्हीं वाद्य यंत्रों पर मैं लोकगीतों को गा रहा हूं. कभी हारमोनियम लोकप्रिय हुआ करता था तो लोग उसे लेकर जाते थे लेकिन गिटार को लेकर कहीं आने-जाने में सहूलियत होती है, इसलिए आराम से हम लोग गिटार लेकर निकल जाते हैं और गीत गाते हैं.” – अंशु सिंह, छात्र

गीत के शब्दों से नहीं होती छेड़छाड़ : अंशु ने बताया कि वह छठ के लोकगीत को गिटार पर गा रहे हैं, लेकिन गीत के मूल शब्दों से कोई छेड़छाड़ नहीं करते हैं. जो लोकगीत है उनके लिरिक्स जो है उनमें काफी भावनाओं का उबाल होता है और किसी शैली में इन गीतों को गया जा सकता है क्योंकि भावनाएं वही रहती हैं. हर शैली में यह गीत लोगों को जोड़ लेती है. वह जब गीत शुरू करते हैं तो घाट पर आसपास कई लोग बैठ जाते हैं और सभी सराहना करते हैं. इस मौके पर उन्होंने ‘कांचही बांस के बहंगिया’ जैसे छठ के कई लोकगीतों को गिटार की धुन पर सुनाया.

लोकगीत के माध्यम से लोक संस्कृति से जुड़ाव : इस मौके पर अंशु के दोस्त यशराज ने कहा कि वह अधिकांशत: रैप गाने को गाते हैं अथवा अन्य गानों की लिरिक्स गुनगुनाते हैं और अंशु उसके लिए गिटार की धुन तैयार करते हैं. आज के युवा गिटार के म्यूजिक की गानों को पसंद कर रहे हैं. जब वह लोग गीतों को गिटार पर गाते हैं तो उनके शब्दों से कोई छेड़छाड़ नहीं करते हैं, इससे जो लोग उन लोकगीतों को नहीं सुने रहते हैं वह भी सुनते हैं, और लोकगीतों के माध्यम से अपनी लोक संस्कृति से जुड़ते हैं. लोकगीतों में लोक संस्कृति की भावनाएं होती हैं और इसी के प्रचार प्रसार के लिए वह काम कर रहे हैं. वह लोगों को लोकगीतों के माध्यम से लोक संस्कृति से जोड़ने में लगे हुए हैं.

समृद्ध है बिहार का संगीत : इस मौके पर राजू कुमार और आलोक चौहान ने कहा कि गिटार पर जब दोनों लोकगीतों को गाते हैं तो बहुत ही शानदार लगता है. उन्हें यह बहुत अच्छा लगता है इसलिए वह इन लोगों के साथ जुड़कर बीच में कोरस करते हैं. खासकर अभी के समय जब गिटार पर छठ गीत गा रहे हैं तो काफी आनंद आ रहा है और आसपास जब इसे सुनने के लिए लोग बैठ जा रहे हैं तो यह देखकर भी अच्छा लग रहा है. अपने लोकगीतों को सुनकर उन्हें पता चला है कि बिहार की भी संगीत काफी समृद्ध है.

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