भारत पर नेपाल को लेकर उठ रहे सवाल।
पड़ोसियों के साथ भारत के रिश्ते हो रहे खराब
प्रदीप कुमार नायक
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
भारत सरकार से नेपाल के रिश्ते दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही हैं।कई लोग विश्लेषक भी इस बात से सदमे में हैं कि आखिर कल तक हमारा सबसे करीबी पड़ोसी जिससे हमारा रोटी-बेटी का संबंध रहा हैं।उससे अचानक ही सबन्धों में इतनी दूरी क्यों ?
भारत और नेपाल के बीच बढ़ते तनाव ने उन लोंगो के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है, जिनके सम्बंध बॉर्डर के दोनों तरफ रह रहे लोंगो से हैं। दोंनो ही देशों ने सुरक्षा की दृष्टि से सीमाओं पर सेना की तैनाती कर दी हैं।सीमा पर रहने वाले कई लोगो का रिश्तेदार बॉर्डर के उस पार रहते हैं।अब उनका मिलना-जुलना मुश्किल हो गया हैं।
13 फरवरी को सीतामढ़ी की एक अचला नामक महिला अपने माता-पिता से मिलने नेपाल जा रही थी तो बॉर्डर पर नेपाली पुलिस ने आपत्ति जताई ।इसके बाद बहस हो गई और फायरिंग भी हुई। उसे बेरहमी से मारापीटा भी गया।गोलीबारी की घटना में जानकी नगर के बिकेस कुमार की मौत हो गई। जबकि दो अन्य लोग घायल हो गए।किशनगंज जिले के दिघलबैंक और झापा बाजार सीमा पर अनेको बार दोनो सीमा के जवानों में झड़पे भी हुई।वहा के लोग आज भी अबैध रास्ते का ही प्रयोग करते हैं। सिर्फ वहां के लोग ही नहीं बल्कि भारत के अनेक लोग नेपाल जाने के लिये अबैध रास्ते का ही प्रयोग करते है।
दोनों ही देशों के विश्लेषकों के बीच इस बात पर सहमति नजर आई कि नेपाल के विदेश मंत्री प्रदिप कुमार ज्ञवाली के भारत दौरे से कम से कम दोंनो देशों के सीमा और मानचित्र को लेकर पैदा हुए विवाद पर बातचीत करने के लिए राजी तो हुए। लेकिन शायद बातचीत का नतीजा कुछ नहीं निकला।नेपाल कालापानी,लिपुलेख और लिम्पियाधुरा के 370 वर्ग किलो मीटर के इलाके को नेपाल के अधीन लाना चाहता हैं।
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देव की टिप्पणी से भारत और नेपाल के रिश्ते असहज होती रही।अगरतला में बिप्लब् कुमार देव ने पार्टी के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह का हवाला देते हुए कहाँ था कि भाजपा न केवल भारत के सभी राज्यों में बल्कि नेपाल और श्री लंका में भी सरकार बनाना चाहती हैं।
वे कहते है कि सरदार पटेल की तरह ये भी भाजपा का विस्तार चाहता हैं।ये पूरे दक्षिण एशिया में हिन्दू धर्म का प्रभाव चाहते हैं।लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय हैं न कि राज्य का। किसी की संप्रभुता छोटी या बड़ी नही होती हैं।सबकी संप्रभुता का सम्मान उसी रूप में होना चाहिए।
बिप्लब् देव् का यह बयान नेपाली मीडिया में छाया रहा।नेपाली अखबार नई पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि क्या भाजपा की यह गोपनीयता योजना बाहर आ गई? नेपाल में आर.एस. एस. अपना विस्तार पहले से ही कर रहा हैं।ऐसे में भाजपा के मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी सुनियोजित हैं या संयोग हैं ?
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदिप ज्ञवाली का कहना है कि इस मामले में नेपाल ने भारत के समक्ष औपचारिक दर्ज करा दी हैं। वहीं दूसरी ओर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी(प्रचंड गुट) के केंद्रीय और नेपाली प्रवास समन्वय समिति के अध्यक्ष युवराज चमलागाई कहते हैं कि बिप्लब् देव् की यह टिप्पणी नेपाल की संप्रभुता का अपमान हैं।भाजपा पार्टी के मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी से पता चलता है कि भारत का शासक वर्ग नेपाल को लेकर क्या सोचता हैं।आप यह कैसे कह सकते हैं कि नेपाल एक संप्रभुता देश हैं।युवराज कहते हैं कि नेपाल को लेकर भाजपा में इतना आत्मविश्वास कहां से आता हैं,ये सोचने की बात हैं।इन्हे लगता हैं कि नेपाल में हिन्दू आबादी बहुसंख्यक हैं, तो कुछ भी बोल दो। मेरा मानना हैं कि नेपाल सरकार को और कड़ी आपत्ति दर्ज करानी चाहिए थी।
भारत के साथ सीमा विवाद के बीच नेपाल के द्वारा नया राजनीतिक नक्शा जारी करने से नया विवाद खड़ा हो गया हैं।इस नक़्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है।भारत और नेपाल दोंनो इन क्षेत्रों को अपना अभिन्न हिस्सा बताता हैं।भारत उसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ का हिस्सा बताता हैं और नेपाल उसे धारचूला जिले का हिस्सा बताता हैं।
नेपाल और भारत के बीच 27 बॉर्डर प्वाइंट है,जबकि चीन और नेपाल के बीच महज़ एक बॉर्डर प्वाइंट तातोपानी हैं।चीनी पोर्ट गुआंगचोउ काठमांडू से 2,844 किलोमीटर है,जबकि कोलकाता पोर्ट काठमांडू से 866 किलोमीटर ही दूर हैं।ऐसे में दोनों देश चाहकर भी विस्तार नहीं दे पा रहे हैं।
अक्सर,देखा गया हैं कि सामाजिक परिदृश्यों या राजनीतिक लालसा की वजह से देश टूटते हैं।भारत से भी टूटकर दो देश पाकिस्तान और बांग्लादेश बने।राजनेता अपनी राजनीतिक लालसा या विकास के नए आयाम गढ़ने के लिए अक्सर देश के अन्दर भी कई राज्यों को अलग करते आए हैं।लेकिन आज हम दो देश को एकसाथ लाने की मंशा और इससे होने वाले फायदे के बारे में बात कर रहे हैं।
नेपाल की आंतरिक राजनीति की बात करे तो वह कुछ वर्षों में काफ़ी अस्थिर रही हैं।सच माने तो भारत और नेपाल दोनों देशों में एक सशक्त और मजबूत नेता की सख्त जरूरत है।जो पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते को बेहतर बना सके।भारत को नेपाल के संदर्भ में अपनी विदेश नीति की समीक्षा करने की जरूरत हैं।
भारत और नेपाल के बीच सीमांकन का इतिहास बहुत पुरानी हैं।1816 में सुगौली सन्धि के पहले नेपाल किंगडम का विस्तार पश्चिम में सतलज से लेकर पूरव में तीस्ता नदी तक था।एंग्लो -नेपाली युद्व में नेपाल की हार हुई और इसका अंत सुगौली सन्धि के साथ हुआ।सुगौली सन्धि के तहत नेपाल का काली और राप्ती नदी के बीच का पूरा मैदानी इलाका ब्रिटिश इंडिया को सौंपना पड़ा।सुगौली सन्धि के तहत नेपाल फिर से इन इलाकों पर दावा नही कर सकता था।
नेपाल का यह भी कहना हैं कि 04 मार्च 1816 में हुई सुगौली सन्धि,08 सितंबर1816 में हुई सुगौली सन्धि के पूरक सन्धि,1857 में भारत द्वारा जारी किया गया नेपाल की नक्शा,01 नवंबर 1860 में बांके, बर्दिया और कंचनपुर नेपाल को देने की समझौता,07 जनवरी 1875 में दांग के डुडुवा क्षेत्र सीमांकन की नक्शा, 1995 में लिम्पियाधुरा क्षेत्र के जनताओं द्वारा अनाज जमा किया गया प्रमाण,2015 के आम निर्वाचन की मतदाता नामावली,2018 साल की जनगणना इत्यादि।इन्हीं आधारों पर नेपाल लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा पर अपना कब्जा जमा रहा हैं।
नेपाल का कहना हैं कि पहले नेपाल की भूमि एक लाख 43 हजार 557 वर्ग किलोमीटर था।फिलहाल यह भूमि एक लाख 41 हजार 181 वर्ग किलोमीटर ही हैं।बाकी का जमीन हमारी कहां गई।लिपुलेख,कालापानी और लिम्पियाधुरा हमारा हैं।जिसका प्रमाण हमारे पास हैं।
1870 के दशक से सर्वे आँफ़ इंडिया के नक़्शे में लिपुलेख डाउन से कालापानी तक का इलाका ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा था।भारत की आज़ादी के बाद से नेपाल के राणा शासक और नेपाली राजाओं ने इनको लेकर कोई दावा नहीं किया।1857 के विद्रोह में सैन्य मदद के लिए जंग बहादुर राणा को ब्रिटिश इंडिया ने इनाम के तौर पर नेपालगंज और कपिलवस्तु दे दिया था।लेकिन ब्रिटिश इंडिया ने गढ़वाल और कुमाऊ का कोई भी इलाका वापस नहीं किया।
हम भारत और नेपाल में आम लोंगो के बीच मजबूत संबंध चाहते हैं।लेकिन शासक वर्ग की अधिनायकवादी सोच से परे हैं।इन जैसी बेवकूफों के बयान के कारण भारत के नजदीकी पड़ोसी देश नेपाल से रिश्ते खराब दौर में पहुँच चूंकि हैं।
नेपाल का कहना हैं कि पिछले 58 सालों से भारत के कब्ज़े में रहा ये इलाका नेपाल का हैं।इससे पहले 146 सालों से ये इलाका नेपाल के कब्ज़े में था।
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की सियासत बदल रहीं हैं।चीन के साथ हमारी संबंध पहले ही खराब हैं।अमेरिका के साथ भी हम अपनी संबंध खराब करना चाह रहे हैं।पाकिस्तान के साथ हमारी संबंध कभी नहीं बनी।बांग्लादेश और भूटान से भी हम दूरी बनाएं हुए हैं।पड़ोस में भी हमारे आसपास जिनते भी देश हैं, उनसे भी हमारे संबंध खराब होते जा रहे हैं।
क्या हम इतना बड़ा कूटनीतिक आघात या आत्म हत्या कुछ सक्रिय सियासत के लिए कर सकते हैं।भारत को सोचना पड़ेगा कि हमारे सामने एक बहुत बड़ा विदेशी पॉलिसी दिखाई दे रहा हैं।हमलोग एक ज्वालामुखी पर बैठे हुए हैं।आने वाले दिनों में हमें सोच-समझकर कदम रखना पड़ेगा।
दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का बाजार गर्म हैं।समस्याएं सामने हैं, लेकिन समाधान गौण हैं।सभी अपनी डफली अपना राग अलापने में व्यस्त हैं।
जीवन में जिस दिन आप ये समझ गए कि आपकी हार और जीत के लिए आप स्वयं ही जिम्मेदार हैं।उस दिन आपको सफ़ल होने से कोई नहीं रोक सकता।
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