झारखंड में लागू हो पाएगा 77% आरक्षण या बन जाएगा झुनझुना, समझें आगे क्या होगा
झारखंड विधानसभा में मॉनसून सत्र के विस्तारित सत्र में शुक्रवार को झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 भी पारित किया गया। इस विधेयक में पिछड़ी जाति का आरक्षण 14से बढ़ा 27 प्रतिशत किया गया है। एससी और एसटी का आरक्षण भी बढ़ाया गया है।
अभी झारखंड में एसटी को 26, एससी को 10 और पिछड़ों को 14 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। इस विधेयक के कानून बनने और नौंवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद एसटी को 28, एससी को 12 तथा पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग( एनेक्सर-1) को 15 तथा पिछड़ा वर्ग (एनेक्सर-2) को 12 फीसदी आरक्षण मिलेगा। आर्थिक रूप से कमजोर को आरक्षण को शामिल कर राज्य में 77 प्रतिशत आरक्षण लागू होगा।
झारखंड सरकार की ओर से शुक्रवार को विधानसभा में रखे गये दो विधेयकों को सदन की मंजूरी मिल गयी। अब इन विधेयकों के साथ आगे क्या होगा, कानून बनेंगे या लागू हो पाएंगे कि नहीं, यह जानना सबके लिए जरूरी है। विधायी और संवैधानिक विशेषज्ञ अयोध्या नाथ मिश्र ने बताया कि विधेयकों को कई चरणों से गुजरते हुए कानून का रूप लेना है। फिर नौवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद ही सरकार इसे लागू करेगी। नौवीं अनुसूची में डालने की लंबी प्रक्रिया है। विधेयकों के हिन्दी और अंग्रेजी संस्करण की अलग-अलग प्रतियां बनाकर राजभवन भेजी जाएंगी। स्थानीयता की परिभाषा वाले विधेयक में संशोधन प्रस्ताव भी लाया गया है, इसलिए सरकार के विधि विभाग की ओर से संशोधन जोड़कर विधेयक की नई प्रतियां विधानसभा भेजी जायेंगी। विधानसभा दोनों पारित विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी के लिए राजभवन भेजेगा।
राज्यपाल कानूनी पहलुओं का करेंगे अध्ययन
राज्यपाल दोनों विधेयकों के कानूनी पहलुओं का अध्ययन करेंगे। विधि विशेषज्ञों से मशविरा के बाद मंजूरी देंगे या त्रुटि मिलने पर विधानसभा को लौटा भी सकते हैं। पहले भी कई विधेयकों में त्रुटियां मिलने के बाद राज्यपाल लौटा चुके हैं। राजभवन की मंजूरी के लिए सरकार के संबंधित विभागों के साथ राज्यपाल विर्मश करेंगे और विधि परामर्श के बाद विधेयक को मंजूरी देंगे। विधेयक राजभवन के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। स्थानीयता से संबंधित विधेयक गृह मंत्रालय के साथ साथ राष्ट्रपति को भेजा जाएगा।
आरक्षण संबंधी विधेयक केंद्र को भेजा जाएगा
आरक्षण संबंधी विधेयक केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। केंद्र सरकार विधिक सलाह लेकर राष्ट्रपति को मंजूरी के बाद नौवीं अनुसूचि में शामिल करने की प्रक्रिया पूरी करेगी। राष्ट्रपति को स्थानीयता को परिभाषित करने वाले विधेयक में कोई आपत्ति मिलेगी तो राज्य को लौटा सकती हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय इसकी सांगोपांग विधिक समीक्षा करेगा। ताकि इसकी विधिक पहलुओं पर राज्य-केंद्र के बीच किसी तरह के समन्वय के अभाव में विधेयक कानून बनकर लागू होने से पहले कहीं सवालों के घेरे में ना पड़ जाए।