बिहार में शराबबंदी कानून लागू है लेकिन इस कानून के लागू होने से बिहार की आम जनता को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. ना तो बिहार में शराब की कमी है, ना शराब कारोबारियों की और इन सबके बीच अगर कोई पिस रहा है तो वो है आम जनता. बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने से पहले भी शराब बिकता था और आज भी बिकता है. अगर कुछ बदला है तो शराब की कीमत. बेशक शराब की बोतलों पर कीमत कुछ भी लिखी हो लेकिन अवैध शराब माफियाओं का अपना अलग ही दाम है. बोतल पर जो कीमत लिखी है उससे आप तीन गुना ज्यादा दाम यानि कि 100 रुपए की शराब की कीमत 300 रुपए दे दीजिए और आराम से शराब पीजिए. पकड़े गए तो आप पर कार्यवाई होगी लेकिन अवैध शराब कारोबारियों पर नहीं. बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जमकर आरोप-प्रत्यारोप हुए लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला. कहीं लोग जहरीली शराब पीकर मर रहे हैं तो कहीं शराब माफिया ट्रक के ट्रक शराब सप्लाई कर रहे हैं. प्रशासन इनके खिलाफ कार्रवाई भी करता है लेकिन वो कार्रवाई नाकाफी साबित होती हैं. छह साल पहले 2016 में जब बिहार में पूर्ण शराबबंदी का ऐलान सरकार द्वारा किया गया तो कई दावे किए गए थे और कई तरह के फायदे गिनाए गए थे. शराबबंदी कानून लागू होने के 6 वर्ष बाद भी बिहार के हालात खराब हैं और लोग शराब पी ही रहें हैं और शराब माफियाओं की चांदी है. तो सवाल ये उठता है कि आखिर जो कानून धरातल पर लागू नहीं हो पा रहा है तो उसका फायदा फायदा क्या है?
फिलहाल बिहार में कितने लोग शराब पीते हैं इसका कोई ठीक-ठीक आंकड़ा नहीं है. हालांकि, सीएम नीतीश कुमार कई मौकों पर ऐसे आंकड़े देते हुए सुने गए हैं कि इतने लोगों ने शराब छोड़ी. बिहार में पकड़ी जा रही शराब और शराब पीने वालों की संख्या के आधार पर एक सर्वे किया गया था. सर्वे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के द्वारा 2020 में किया गया था. यानि कि ये सर्वे शराबबंदी कानून लागू होने के लगभग 4 साल बाद किया गया था.