शिक्षाविद तथा सामाजिक कार्यकर्ता मैरी रॉय का बृहस्पतिवार को निधन हो गया। वह 89 वर्ष की थीं। रॉय की कानूनी लड़ाई ने सीरियाई ईसाई महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिलाया था।
उनके पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि उन्होंने उम्र संबंधी बीमारियों के कारण कोट्टयम स्थित अपने आवास में सुबह नौ बजकर 15 मिनट पर अंतिम सांस ली।
लेखिका और मैन बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति रॉय की मां मैरी रॉय कोट्टयम के समीप मशहूर पल्लीकूदम स्कूल की संस्थापक भी हैं।
उनके परिवार ने बताया कि उनका पार्थिव शरीर बृहस्पतिवार को दोपहर तीन बजे से रात नौ बजे तक पल्लीकूदम में उनके आवास में रखा जाएगा तथा दो सितंबर को सुबह सात बजे से दोपहर तक एमआर ब्लॉक में रखा जाएगा, ताकि लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार दोपहर को किया जाएगा।
रॉय ने 1980 के दशक में उच्चतम न्यायालय में केरल में सीरियाई ईसाई परिवारों की पैतृक संपत्ति में महिलाओं को समान अधिकार देने की मांग करते हुए कानूनी लड़ाई शुरू की थी। उच्चतम न्यायालय ने 1986 के दशक में एक ऐतिहासिक फैसले में उनकी याचिका मंजूर कर ली थी।
पूर्व में त्रावणकोर राज्य के 1916 के त्रावणकोर उत्तराधिकार कानून के प्रावधानों को पलटते हुए उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया था कि समुदाय की महिला सदस्यों का भी उनके पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है।
अपने भाइयों के खिलाफ लड़े मुकदमे में उन्होंने अपने पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार देने की मांग की थी। इस मामले को भारतीय कानून के इतिहास में ‘‘मैरी रॉय केस’’ के तौर पर जाना जाता है।
कोट्टयम के समीप अयमानम के एक प्रतिष्ठित ईसाई परिवार में 1933 में जन्मीं रॉय ने दिल्ली से स्कूली शिक्षा प्राप्त की तथा बाद में चेन्नई के एक कॉलेज से डिग्री हासिल की। उन्होंने कोलकाता की एक कंपनी में सचिव के पद पर काम करते हुए राजीब रॉय से शादी की थी। उन्होंने 1967 में पल्लीकूदम स्कूल की स्थापना की।
मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन तथा राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता वी डी सतीशन ने रॉय के निधन पर शोक जताया। विजयन ने कहा कि मैरी ने शिक्षा तथा समाज में महिलाओं की भलाई में अहम योगदान दिया। उन्होंने उन्हें ऐसे व्यक्ति के तौर पर याद किया, जिन्होंने महिलाओं के संपत्ति अधिकारों के लिए अपनी कानूनी लड़ाई से इतिहास में एक मुकाम हासिल किया।
रॉय के निधन पर शोक जताते हुए सतीशन ने कहा कि वह महिला अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक थीं।