Home खास खबर थोड़ा इस नजरिये से देखें महाराष्ट्र का चुनाव-परिणाम

थोड़ा इस नजरिये से देखें महाराष्ट्र का चुनाव-परिणाम

5 second read
Comments Off on थोड़ा इस नजरिये से देखें महाराष्ट्र का चुनाव-परिणाम
0
210

थोड़ा इस नजरिये से देखें महाराष्ट्र का चुनाव-परिणाम

महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव का मूल संकेत तो यह है ही कि अच्छी एंटी इनकम्बेंसी थी और जनता ने खुद विकल्प देने की कोशिश की लेकिन पस्त विपक्ष ने उसे सहारा नहीं दिया. यह भी कि एनआरसी, 370, पैसा, मैनेजमेंट ने उतना ही काम किया जिससे बीजेपी की जान और इज्जत दोनो बची वरना तो पस्त विपक्ष से भी पटकनी मिल जानी थी.

 

महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम की सबसे बड़ी परिघटना सिद्ध हुए बूढ़े मराठा क्षत्रप शरद पवार जिन्होंने न सिर्फ अपने विधायकों की संख्या बढ़ाई बल्कि कांग्रेस को भी सम्मानजनक सीटें दिलाई, पिछले चुनाव से थोड़ा ज्यादा। इसके बावजूद कि उन्हें भाजपा और ईडी, इनकम टैक्स ने मिलकर घेर रखा था.

इस चुनाव परिणाम से महाराष्ट्र में मराठा राजनीति ने अपना दमखम दिखा दिया है. मराठा वर्चस्व वाले राज्य में यूं तो बीजेपी ने गैर मराठा ओबीसी आकांक्षा को खूब हवा दी, सहारा दिया लेकिन मुख्यमंत्री एक ब्राह्मण को बना दिया- इसे एक हलके में लोग पेशवाशाही की वापसी की तरह देखते रहे, जबकि देवेन्द्र फडनवीस की भाजपा और योगी की भाजपा में साफ़ फर्क दिखा है पिछले पांच सालों में. इस फर्क का श्रेय भी न भाजपा को जाता है और न फडनवीस को बल्कि महाराष्ट्र का सामाजिक स्पेस इस कदर तैयार किया है फुले-अम्बेडकरवादी आंदोलनों ने कि भाजपा यहाँ इसी स्वरूप में राजनीति करने के लिए विवश है.

चुनाव परिणाम ने अम्बेडकरवादी रिपब्लिकन राजनीति के साथ-साथ दलित राजनीति के लिए भी सबक दिया है. काफी शोर -शराबे के बावजूद प्रकाश अम्बेडकर की बहुजन अघाड़ी असर पैदा नहीं कर पायी और देश में सबसे अधिक दलित आबादी वाले विदर्भ क्षेत्र में भी जमानत तक नहीं बचा पायी. प्रकाश अम्बेडकर अपने प्रभाव क्षेत्र अकोला परिक्षेत्र अलावा पूरे विदर्भ में निष्प्रभावी रहे. उधर रामदास आठवले के भाजपा गठबंधन के साथ होने के बावजूद भाजपा ने दलित बहुल विदर्भ क्षेत्र में 2014 की तुलना में अपनी कई सीटें गवाई हैं. यानी दलित जनमत बीजेपी के खिलाफ था तो वह आरपीआई की विरासत के साथ भी नहीं गया और न बहुजन समाज पार्टी के साथ. इस दलित बाहुल व एक समय कांग्रेस का गढ़ रहे इस इलाके में भाजपा ने फिर भी ठीक प्रदर्शन किया है तो तय है कि उसे दलितों-अति पिछड़ों का समर्थन एक हद तक जारी है.

मराठा राजनीति ने अपना साफ़ सन्देश दे दिया है और संसदीय दलित राजनीति घाट नहीं ले पा रही है और न अपने पारम्परिक नेताओं पर विश्वास कर पा रही है- संकेत यही है.

भाजपा फिर भी यदि अपने पुराने मुख्यमंत्रियों को दोनों राज्यों में दुहराती है तो यह उसे आगे भी परेशान करेगा.

Load More Related Articles
Load More By Seemanchal Live
Load More In खास खबर
Comments are closed.

Check Also

1 ओवर में खाए 8 छक्के, 77 रन किए खर्च; इस दिग्गज के नाम है शर्मनाक रिकॉर्ड

1 ओवर में खाए 8 छक्के, 77 रन किए खर्च; इस दिग्गज के नाम है शर्मनाक रिकॉर्ड Most Expensive …