
19% दलित वोटर्स को लुभाने के लिए नीतीश कुमार का मास्टर प्लान, अंबेडकर के सहारे JDU फिर से बनेगा नंबर वन? – DALIT POLITICS IN BIHAR
बिहार की राजनीति में दलित मतदाता निर्णायक होते हैं. ऐसे में अंबेडकर जयंती के बहाने नीतीश कुमार दलित समाज को रिझाने में जुट गए हैं.
पटना: 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को समाज के हर तबके का समर्थन मिला था. इन दोनों चुनावों में सबसे अधिक दलित विधायक वाले जेडीयू को 2020 में भारी नुकसान हुआ. ऐसे में 2025 चुनाव के लिए पार्टी ने अभी से रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के आसरे दलित समाज को फिर से जोड़ने की कोशिश की जा रही है. 13 अप्रैल को जहां भव्य तरीके से अंबेडकर जयंती मनाई जाएगी, वहीं अगले रोज यानी 14 अप्रैल को दीपोत्सव कार्यक्रम का भी आयोजन होगा, जिसमें जेडीयू के नेता अपने घरों में दीप जलाकर अंधकार से शिक्षा रूपी उजाले की ओर चलने का संदेश लेंगे.
दलित वोट बैंक पर जेडीयू की नजर: 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को तीसरे नंबर की पार्टी बनाने में दलित वोट बैंक ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इसलिए इस बार जेडीयू करीब 20 फीसदी दलित वोट के सहारे नंबर वन पार्टी बनने की तैयारी कर रही है. पटना के बापू सभागार में 13 अप्रैल को बड़ा कार्यक्रम किया जा रहा है. पार्टी के सभी दलित मंत्री और नेताओं को इसमें लगाया गया है. हालांकि पिछले साल भी ‘भीम संसद’ के जरिए दलितों को रिझाने की कोशिश की गई थी.
अंबेडकर जयंती के बहाने दलित पॉलिटिक्स: अब लगातार दूसरे साल दलित को ध्यान में रखते हुए बड़ा कार्यक्रम हो रहा है. जेडीयू नेताओं का कहना है कि ‘2025 फिर से नीतीश’ के अभियान को हम लोग लेकर चल रहे हैं. जेडीयू ने एक ट्रेंड चलाया है ‘मैं भी दलित हूं’. इसके पीछे भी पार्टी के नेता कह रहे हैं कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो काम किया है, उससे दलितों का सम्मान बढ़ा है. नेताओं का कहना है कि वास्तव में दलितों के लिए अंबेडकर के बाद नीतीश कुमार ही ‘मसीहा’ हैं.
क्यों जरूरी है दलित वोटबैंक?: बिहार में 243 विधानसभा सीटों में प्रत्येक सीट पर अनुमानत: 40000 से 50000 के करीब दलित मतदाता हैं, जो हर चुनाव में जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं. बिहार विधानसभा में कुल 39 आरक्षित सीटें हैं, इसमें 38 अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है. अब तक दलित वोट बैंक का जो ट्रेंड रहा है. उसमें सबसे अधिक जेडीयू-आरजेडी और बीजेपी के बीच ही बंटवारा होता रहा है.
चिराग के कारण जेडीयू को नुकसान: 2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 8, बीजेपी ने 9, हम ने 3, आरजेडी ने 9, कांग्रेस ने 4 और वामपंथी दलों ने भी 4 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि मुकेश सहनी की वीआईपी को भी एक सीट पर जीत मिली थी लेकिन बाद में उनके विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. 2020 में जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी हो गई थी. उसे मात्र 43 विधानसभा सीटों पर जीत मिली. चिराग पासवान के कारण जेडीयू को काफी नुकसान उठाना पड़ा था.
दलित वोटबैंक की बदौलत नंबर वन बनने का प्लान: 2020 में तीसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद से ही सबक लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अंबेडकर जयंती को भव्य रूप से मनाने का फैसला लिया. 2024 में भीम संसद का आयोजन किया गया, जिसकी खूब चर्चा हुई थी. पटना वेटरिनरी कॉलेज मैदान पर बड़ी संख्या में भीड़ जुटी थी. अब दूसरे साल भी अंबेडकर जयंती पर जेडीयू की तरफ से बड़ा कार्यक्रम होने जा रहा है. पार्टी को लगता है कि चुनावी साल में ऐसे कार्यक्रम के माध्यम से दलित समाज को पास लाने में मदद मिलेगी.
“हम लोग 2025 में फिर से नीतीश के अभियान को लेकर कार्यक्रम कर रहे हैं. जब दलितों के लिए नीतीश कुमार ने काम किया है तो वोट भी दलितों का नीतीश कुमार को ही मिलेगा. हमलोगों को पूरा भरोसा है कि दलित समाज एक बार फिर नीतीश कुमार जी को अपना समर्थन देगा.”- राजेश त्यागी, अध्यक्ष, अनुसूचित जाति-जनजाति प्रकोष्ठ, जेडीयू
2005 और 2010 में सबसे अधिक दलित विधायक: 2015 में आरजेडी को सबसे अधिक 14 दलित सीटों पर जीत मिली थी, उसके बाद जेडीयू को 10 सीट मिली थी. वहीं कांग्रेस और बीजेपी को 5-5 सीट पर जीत हासिल हुई थी. 2015 में जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन था, जबकि दूसरी तरफ बीजेपी का चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के साथ अलायंस था. वहीं, उससे पहले के चुनाव में जेडीयू का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा था. 2005 में 15 और 2010 में 19 रिजर्व सीटों पर जीत मिली थी. 2010 में आरजेडी के केवल एक दलित विधायक जीत
अंबेडकर के बाद नीतीश ही दलितों के मसीहा: चुनावी साल में अंबेडकर जयंती पर जेडीयू की तरफ से ‘मैं भी दलित हूं’ ट्रेंड भी चलाया जा रहा है. इसके पीछे पार्टी के नेताओं का तर्क है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दलितों के लिए जो काम किया है, वह किसी सरकार ने नहीं किया है. नेताओं ने कहा कि दलितों में सबसे गरीब जाति मुसहर है. हमारे नेता ने इसी समाज के जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री भी बनाया. कई अन्य नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी. इसके अलावे दलित समाज के लिए कई योजनाएं भी चलाई जा रही है. इसलिए अंबेडकर के बाद नीतीश कुमार ही दलितों के असली मसीहा हैं.
“मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने दलितों के लिए जो काम किया है, यहां तक कि सबसे गरीबों मुसहर जाति से आने वाले जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री भी बनाया है. उन्होंने दलित समाज के लिए कई योजना चलाई है. अंबेडकर के बाद नीतीश कुमार मसीहा हैं. इसलिए हम लोग सम्मान के साथ कह रहे हैं कि मैं भी दलित हूं, क्योंकि नीतीश कुमार के शासन में दलितों का मान सम्मान काफी बढ़ा है.”- राजेंद्र प्रसाद, पूर्व सदस्य, राज्य महादलित आयोग
अंबेडकर जयंती कार्यक्रम की तैयारी जोरों पर: जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा के नेतृत्व में दलित मंत्रियों और नेताओं की लगातार बैठक हो रही है. अंबेडकर जयंती कार्यक्रम को सफल बनाने की रणनीति तैयार की जा रही है. प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा के मुताबिक, ‘बाबा साहब के सिद्धांत, विचार और आदर्श को किसी ने उतारने का काम किया है तो, वह हमारे नेता नीतीश कुमार ही हैं.’
क्या कहते हैं जानकार?: राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील पांडे का कहना है कि बिहार में दलितों का एक बड़ा वोट बैंक है. लिहाजा हर पार्टी चाहती है कि यह वोट बैंक उसके साथ जुड़े. यही वजह है कि जेडीयू की भी कोशिश अंबेडकर जयंती के बहाने उस वोट बैंक को साधने की है. वे कहते हैं कि 2020 में नीतीश कुमार को दलित वोट बैंक के कारण ही बड़ा झटका लगा था लेकिन इस बार एनडीए में चिराग पासवान भी हैं, ऐसे में दलित वोट में बिखराव की संभावना कम है.
“बिहार में दलितों की अनुमानित आबादी 20 प्रतिशत है, इसलिए इस पर सभी दलों की नजर है. चुनावी वर्ष है तो सभी लोग चाहेंगे कि इस वोटबैंक को साथ रखा जाए. 2020 के चुनाव में जेडीयू का अनुभव बेहद खराब रहा था. इसलिए इस बार इनको जोड़ने की पूरी कोशिश की जा रही है. यह कार्यक्रम भी उसी का हिस्सा है. वैसे चिराग पासवान के साथ रहने के कारण इस चुनाव में दलित वोटबैंक के एकजुट रहने की संभावना है.”- सुनील पांडेय, राजनीतिक विशेषज्ञ
दलित वोट में नीतीश ने की थी सेंधमारी: बिहार में रविदास (चमार), पासवान (दुसाध) और मुसहर की आबादी दलितों में सबसे अधिक है. वैसे दलितों की कुल 22 जातियां है. दलितों को रिझाने के लिए एक समय नीतीश कुमार ने 21 जातियों को महा दलित बना दिया था. उस समय केवल पासवान जाति को छोड़ दिया था, क्योंकि रामविलास पासवान के साथ नीतीश कुमार का छत्तीस का आंकड़ा था. हालांकि बाद में जब रामविलास पासवान के साथ संबंध ठीक हुआ तो पासवान जाति को भी महादलित का दर्जा दे दिया गया. यानी अब बिहार में सभी दलित की जातियां महादलित श्रेणी में है.
दलितों ने इन तीन जातियों का दबदबा: बिहार में दलित की आबादी 20 फीसदी से अधिक है. अनुसूचित जाति 19.65% और 1% के करीब अनुसूचित जनजाति हैं. दलितों में तीन मजबूत जातियों में सबसे अधिक 5.31% पासवान है. चमार जाति की आबादी 5.26% और मुसहर की आबादी 3% प्रतिशत है. पासवान जाति से आने वाले चिराग पासवान और मुसहर समाज से आने वाले जीतनराम मांझी इस बार एनडीए में हैं. ऐसे में इन दो जाति से आने वाले वोटबैंक के खिसकने का खतरा नहीं के बराबर है.
नीतीश कुमार भी होंगे कार्यक्रम में शामिल: 13 अप्रैल को पटना के बापू सभागार में अंबेडकर जयंती समारोह का आयोजन किया जाएगा, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल होंगे. वहीं, 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के मौके पर दीपोत्सव का कार्यक्रम होगा. उस दिन जेडीयू के नेता और कार्यकर्ता अपने घरों पर दीप भी जलाएंगे. इसको लेकर जेडीयू के नेता और कार्यकर्ता काफी उत्साहित हैं.
“नीतीश कुमार जी ने प्रत्येक दिन प्रत्येक साल बाबा साहेब अंबेडकर को माना है. हमलोग जयंती मनाएंगे, भीम संसद करेंगे और 14 अप्रैल को गांव-गांव और अपने-अपने घर पर दीपक जलाकर संदेश देंगे कि अंधकार से ज्योति की ओर चलो. जो समाज है, वह शिक्षा से जुड़े. साथ ही बाबा साहेब अंबेडकर और नीतीश कुमार जी के विचारों पर चलें.”- संतोष निराला, पूर्व मंत्री, जनता दल यूनाइटेड
दलितों को साधने के लिए हर मोर्चे पर काम: नीतीश कुमार ने 2020 में कम सीट आने के बाद भी कई दलित नेताओं को मंत्री बनाया है. इसमें अशोक चौधरी, महेश्वर हजारी, रत्नेश सादा और सुनील कुमार शामिल हैं. इसके अलावे कई दलित नेताओं की आरजेडी से घर वापसी भी करवाई है. जिसमें श्याम रजक सबसे प्रमुख है. जेडीयू में दलित वोट को साधने के लिए हर मोर्चे पर काम हो रहा है. वैसे आरजेडी की तरफ से भी अंबेडकर जयंती पर पूरी तैयारी हो रही है लेकिन नीतीश कुमार इस बार अंबेडकर जयंती के बहाने बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश करेंगे.