असम में दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरी के दरवाजे बंद
अगर आपके पास भी दो से अधिक बच्चे हैं तो आपको सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी. यह फ़ैसला लिया है असम की सरकार ने.
असम में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उन लोगों को सरकारी नौकरियां नहीं देने का फ़ैसला लिया है जिनके दो से अधिक बच्चे हैं. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की कैबिनेट ने सोमवार को यह फ़ैसला लिया.
इसके अनुसार 1 जनवरी, 2021 के बाद से दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को कोई सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी.
दरअसल 126 सीटों वाली असम विधानसभा ने दो साल पहले जनसंख्या नीति को अपनाया था और अब सोनोवाल सरकार ने यह फ़ैसला लिया है. तब यानी सितंबर 2017 में असम विधानसभा ने असम की ‘जनसंख्या और महिला सशक्तीकरण नीति’ पारित की थी ताकि छोटे परिवार को प्रोत्साहित किया जा सके.
इस नीति के अनुसार सरकारी नौकरी पाने के लिए वो लोग उम्मीदवार नहीं बन सकते जिनके दो से अधिक बच्चे हैं. इसके साथ ही यह भी तय किया गया कि मौजूदा सरकारी कर्मचारियों को भी दो-बच्चे के मानक का सख्ती से पालन करना होगा.
हालांकि सत्तारूढ़ बीजेपी के इस फ़ैसले को प्रदेश में उनकी लंबी राजनीतिक महत्वकांक्षा से जोड़कर भी देखा जा रहा है क्योंकि साल 2011 की जनगणना के हिसाब से असम की कुल आबादी 3 करोड़ 11 लाख 69 हज़ार में मुसलमानों की जनसंख्या क़रीब 1 करोड़ 67 लाख 9 हज़ार है.
यानी राज्य की कुल जनसंख्या में मुसलमानों की आबादी 34.22 फ़ीसदी यानी एक तिहाई से अधिक है. इसके अलावा यहां के 33 में नौ ज़िले मुसलमान बहुल हैं.
ऐसे में जनसंख्या नीति के अंतर्गत छोटे परिवार को सरकारी नौकरी देने के बीजेपी सरकार के इस फ़ैसले को वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी पार्टी के राजनीतिक फायदे से जोड़कर देख रहे हैं.
वे कहते है, “जनसंख्या नीति के तहत अगर सरकार को कोई काम करना था तो उसे जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए मौजूदा जागरूकता कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाना चाहिए था. यह नीति कि दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्ति को सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी, इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है. यह कहकर नौकरी नहीं दिया जाना कि आपके दो से अधिक बच्चे हैं, संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होगा.”
वो आगे कहते है, “दरअसल राज्य में मुसलमानों के बीच जनसंख्या की वृद्धि दर बहुत ज़्यादा है. इसका मुख्य कारण उनमें शिक्षा की दर का कम होना है. अगर इस विषय का राजनीतिक पहलू देखे तो बीजेपी को इसमें राजनीतिक फायदा है. वो लोग चाहते है कि मुसलमानों की जनसंख्या कम हो. क्योंकि लोकतंत्र में सारा खेल नंबर का ही है. फिलहाल हमलोग 2011 की जनगणना पर निर्भर है लेकिन 2021 की जनगणना की जो रिपोर्ट आएगी उसमें प्रतिशत के आधार पर असम में मुसलमानों की ग्रोथ रेट पहले के मुक़ाबले कम होगी. बीजेपी की इतनी कोशिशों के बावजूद पिछले चुनाव में देश के मुसलमानों के कुल वोटों का केवल 6 प्रतिशत वोट ही उन्हें मिला था.”
स्रोत-BBC