लकड़ी के चूल्हे की झंझट से मिल रहा छुटकारा
बनमा ईटहरी के किसान अब एलपीजी नहीं गोबर के सहारे अपने काम निपटा रहे हैं। गोबर गैस से पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचने के साथ-साथ खर्चा भी घटा है।
प्रखंड के रसलपुर, परसबन्नी सहित अन्य कई जगहों पर बने जनता व दीनबंधु डिजाइन के गोबर गैस प्लांट पशुपालकों की पसंद बनती जा रही है। चूंकि यह प्लांट पशुओं के गोबर व पानी के घोल द्वारा चलाए जाते हैं। वहीं इससे लकड़ी की चूल्हे की झंझट से जहां छुटकारा मिलता, वहीं गोबर से खेतों में खाद का उपयोग तथा छोटी मशीन लगाकर बिजली का उपयोग भी की जा सकती है। सबसे खास बात यह है कि इससे पर्यावरण की सुरक्षा अहम मानी जाती है।
पशुपालक किसानों की दो मुख्य समस्याएं: पहली उर्वरक तथा दूसरी ईंधन की कमी, जो तरह-तरह की कठिनाईयां पैदा कर रही है। किसानों को गोबर तथा लकड़ी के अलावा अन्य कोई पदार्थ सुगमतापूर्वक उपलब्ध नहीं है। अगर किसान गोबर का उपयोग खाद के रूप में करता है तो उसके पास खाना पकाने के लिए ईंधन की समस्या बन जाती है। जैसा कि हमें विदित है मृदा की उर्वरक शक्ति ज्यादा फसल पैदा करने से काफी कमजोर हो गई है तथा संतुलित पोषक पदार्थ उपलब्ध नहीं करवा पा रही है। दूसरी ओर रासायनिक खादों के उपयोग से पर्यावरण भी दूषित हो रहा है। इनके प्रयोग में लागत भी ज्यादा आती है तथा इनके मिलने में भी कई बार कठिनाई आती है। जो इन समस्याओं का समाधान गोबर का दोहरा प्रयोग करके किया जा सकता है।
Source – Hindustan