पटसन की खेती से विमुख हुए कसबा के किसान
भारतीय पटसन निगम लिमिटेड की गढ़बनैली शाखा जो कभी क्षेत्र के पटसन किसानों की खुशहाली की कथा बयां करती थी आज पूरी तरह से बदहाल है। साल 1935 में जुग्गी लाल कमलाकांत टावर ने गढ़बनैली में व्यापार करने के उद्देश्य से राजा कलानंद सिंह से जमीन ली थी। राजा ने क्षेत्र के किसानों के उज्जवल भविष्य के लिए इस छोट से गांव में साढ़े तीन एकड़ जमीन दी। उस जमीन पर वर्ष 1935 से लेकर 1995 तक खूब व्यापार हुआ। जूट कार्पोरेशन की गढ़बनैली शाखा से जलालगढ़, गढ़बनैली, कसबा एवं इसके निकटवर्ती गांव के किसानों का जीवन खुशहाल हुआ। परंतु विगत कई वर्षों से इसकी जर्जर स्थिति से न सिर्फ यहां के किसान बल्कि व्यापारी वर्ग भी बदहाली का जीवन जीने को विवश है। इस शाखा के जर्जर भवन, जंग पड़ी मशीनें, जंगल में तब्दील गोदाम इसकी दुर्दशा की कहानी खुद कह रही है। इस शाखा से मोह भंग कर किसान पाट की खेती करना लगभग छोड़ चुके है। भमरा के किसान अब्दुल रहमानी, लागन के किसान रमेश पासवान, बोचगांव के किसान शेख जब्बार आदि का कहना है कि पहले हमलोग मुख्य फसल के रूप में पाट की खेती करते थे। किन्तु अब यह पुरानी बात हो गई। अब यदि किसान पटसन की खेती कर उसे बाजार तक लाते हैं तो प्रबंधन कमेटी गोदाम टूटा होने का रोना शुरू कर देती है। इसका घाटा किसानों को उठाना पड़ता है। इसलिए गिने चुने किसान पटसन की खेती कर उत्पादित पाट को बाजार में खुले भाव में बेच देते हैं। बाजार में किसानों को उचित मुल्य नहीं मिल पाता है। परिणाम स्वरुप क्षेत्र में पटसन की खेती करने वालों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है। इधर प्रखंड विकास पदाधिकारी सुरेन्द्र तांती ने बताया कि इस विषय पर कोई जानकारी नहीं है। ना ही किसी किसान द्वारा इस संबंध में पत्राचार किया गया है। फिर भी संबंधित विभाग से जानकारी ली जाएगी।
Source-HINDUSTAN