कुम्हार के काम से विमुख हो रही है नई पीढ़ी
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय वैदिक मंत्र को चरितार्थ करते हुए, अपने हाथों से दीया बनाकर सदियों से दूसरे के घरों को रोशन करने वाले, प्रखंड के तुलसिया पंचायत अंतर्गत कुम्हार टोली स्थित शिल्पी कुम्हारों के घर आज भी विकास की रोशनी को तरस रहे हैं। पिछले कई पीढ़ियों से अपने पूर्वजों के काम को आगे बढ़ाने के जद्दोजहद में जुटे यहां के दर्जनों परिवारों में से आज भी आधे लोग चाक पर बैठकर मिट्टी को अलग-अलग आकृतियों में डालते नजर आते हैं। वर्तमान समय के चकाचौंध में अधिक लागत एवं कम मुनाफे की वजह से जहां इनकी नई पीढ़ी ने अब इस कुम्हार के काम से अपने को अलग करना प्रारंभ कर दिया है। वहीं प्लास्टिक के बने बर्तन व खिलौना ने इनके चाक की गति को और भी मंद कर दिया है। दूसरी और दिवाली एवं छठ जैसे पावन अवसर पर इनके हाथों की बनी दीप के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक व चाईनीज दीप के बढ़ते प्रचलन ने मानो उनके घरों की रोशनी ही छीन लिया है। इस पेसे से लंबे समय से जुड़े गांव के ही एक कुम्हार बरत लाल गणेश ने अपने दर्द के बारे में बताते हुए कहा कि आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी अपने पुश्तैनी शिल्पी को संजोए आगे बढ़ने का प्रयास करने वाले हम कुम्हारों के लिए अब तक किसी भी सरकार ने कोई ठोस पहल नहीं की है और यही कारण है कि वर्तमान समय में हम जैसे कुम्हार विकास की दौड़ में सबसे पिछली पंक्ति में खड़े हैं और सरकारी उदासीनता एवं सिमटते बाजार के कारण अपनी बदहाली का रोना रो रहे हैं । गांव के अन्य कुम्हार बैसाखू लाल, मोसमात कालू देवी ,कार्तिक लाल ,अनंत लाल आदि की माने तो अगर आने वाले समय में भी हालात यही रहे तो हमारे लिए अपनी पुश्तैनी रोजगार के अस्तित्व को बचाए रखना संभव नहीं होगा। बाजार में मिट्टी के बने सामान का विकल्प आ चुका है। लोग प्लास्टिक व इलेक्टॉनिक दीये की वजह से रोजगार काफी प्रभावित हुआ है। किसी तरह हमलोग समय काट रहे हैं। इस उम्र में और क्या कर सकते हैं।
स्रोत-हिन्दुस्तान