मछली पकड़ने के दौरान मिला विलुप्तप्राय पैंगोलिन
मंगलवार देर रात दिघलबैंक प्रखंड के बैरबन्ना गांव में ग्रामीणों द्वारा मछली मारने के क्रम में एक पैंगोलिन को पकड़ा गया है। ग्रामीणों की सूचना पर बैरबन्ना पहुंचे दिघलबैंक थाना कि पुलिस ने पैंगोलिन को अपने संरक्षक्षण में लेते हुए बुधवार को वन विभाग के कर्मियों को सौंप दिया। वन क्षेत्र पदाधिकारी उमानाथ दूबे ने बताया कि पैंगोलिन सुरक्षित है। इसके बारे में विभाग के वरीय पदाधिकारियों को जानकारी दी गयी है। संभवत: दुर्लभ प्रजाति के इस जीव को पटना स्थित संजय गांधी जैविक उद्यान छोड़ा जायेगा। गौरतलब है कि भारत में पाए जाने वाले पैंगोलिन दुर्लभ प्रजातियों में से एक जीव है। यह जीव समूह में नहीं रहता, अक्सर यह अकेला दिखनेवाला जीव है। पैंगोलिन के मांस को दुर्लभ और गुणकारी मानने के चलते इसका शिकार भी होता है, जिस वजह से भारत में यह जीव आज विलुप्ति के कगार पर है। मंगलवार की रात जो पैंगोलिन भारत नेपाल सीमा पर स्थित बैरबन्ना गांव में मिला है। संभव है कि यह नेपाल के जंगलों से यहां आया होगा। इससे पहले 2016 में भी दिघलबैंक प्रखंड के सीमावर्ती गांव मोहमारी धनतोला के पास भी एक बार पैंगोलिन को पकड़ा गया था। दिखने में खूबसूरत, लेकिन शर्मीले पेंगोलिन शांत स्वभाव का वन्यजीव है, जो चींटी खाता है। जिस कारण अधिकतर चींटियों की बांबी के पास हीं यह जानवर रहता है। छूने या खतरे का आभास होने पर पेंगोलिन खुद को शल्कों (खोल) में समेटकर फुटबाल की तरह गोल हो जाता है। इसके बाद वह यह भी देख ही नहीं पाता कि उस पर कोई हमला भी कर रहा है या नहीं। जिस कारण शिकारी आसानी से पकड़ लेते हैं। इस विलुप्तप्राय वन्य जीव का मांस और स्कल का प्रयोग दवा के रूप में होता है। जबकि इसके खाल से एक विशेष प्रकार के कोट का निर्माण भी होता है।
स्रोत-हिन्दुस्तान