डॉक्टरों की कमी से लचर है जिलेभर की स्वास्थ्य व्यवस्था
डॉक्टरों की कमी से जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था हांफ रही है। 36 लाख आबादी वाले जिले में सीएस, एसीएमओ, संचारी रोग पदाधिकारी, गैर संचारी रोग पदाधिकारी, डीएस जैसे पद पर कार्यरत हैं। बावजूद कहीं भी न तो प्राथमिक उपचार प्रतिदिन होता है। कहीं-कहीं पर तो सप्ताह में तीन से चार दिन ही ओपीडी चलता है।
ऐसे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भर्ती रोगियों का तो भगवान ही मालिक है। सदर और अनुमंडल अस्पताल में तो आम रोगों से ग्रस्त रोगियों का इलाज भी होता है। सीएचसी और पीएचसी स्तर पर केवल प्रसव ही सबसे अधिक कराया जाता है। गंभीर रूप से बीमार व हादसों में जख्मी रोगियों का इलाज पीएचसी स्तर पर नहीं हो पा रहा है। उसे पीएचसी के डॉक्टर द्वारा देखते ही रेफर कर दिया जाता है। डॉक्टरों की कमी के कारण कई पीएचसी ऐसे हैं जहां पर सात दिनों में तीन से चार दिन ही ओपीडी चल पाता है। कुमारीपुर वेलनेस सेंटर में तीन महिनों से डॉक्टर के बिना ही स्वास्थ्य सेवा रोगियों को मिल रहा है। वहां पर डॉक्टरों के नहीं रहने पर पहले से ही रेफर टू हाई सेंटर लिखा और डॉक्टर का हस्ताक्षरित पर्चा रोगी को स्वास्थ्य कर्मियों को दिया जाता है। सात गुणा 24 की बात पीएचसी में पुरानी बात हो गयी है। जिला स्वास्थ्य समिति की समीक्षात्मक बैठक में यह मामला उठता रहता है कि डॉक्टरों की कमी के कारण पीएचसी में ओपीडी नियमित रूप से नहीं चल रहा है। कई एमओआईसी भी नियमित रूप से ड्यूटी नहीं कर पा रहे हैं।