दीपावली व काली पूजा को ले बाजारों में रही चहल-पहल
प्रकाशोत्सव का पर्व दीपावली रविार को जिला मुख्यालय सहित प्रखंडों में मनाये जाने को लेकर जहां शनिवार को बाजारों में काफी चहल पहल देखी गई। वहीं काली पूजा को लेकर शहर के कालीबाड़ी एवं तिनगछिया स्थित काली मंदिर सहित प्रखंडों के मंदिरों एवं पूजा पंडाल बनाकर मां की अराधना करने वाले समिति के सदस्यों द्वारा तैयारी को अंतिम रुप दिया जा रहा है।
कहा जाता है कि दीपावली के दिन घर एवं दरवाजों पर मिट्टी के दीये जलाये जाने से लक्ष्मी एवं भगवान गणेश विशेष रुप से कृपा की बरसात करते हैं। इसके अलावा मिट्टी के दीये जलाये जाने से विभिन्न प्रकार के रोग फैलानेवाले कीट पतंग जलकर राख हो जाते है। जो पर्यावरण संतुलन के लिए प्रमुख कारक भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे तथा अयोध्या वासियों ने अपने घरों एवं दरवाजे पर दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था। इसी कारण कार्तिक अमावस्या के दिन प्रतिवर्ष उनके सम्मान में दीपावली मनाने की परम्परा शुरु की गई।
दीपावली के पूर्व संध्या पर शनिवार को नरक चतुर्दर्शी के रुप में नरक के देवता यम की पूजा भी की जाती है। इसी कारण शनिवार की संध्या में घर के बार कचरा व गोबर के ढेर के समीप यम के नाम से दीपक भी जलाये गये।
बाजारों उमड़ी खरीददारों की भीड़
शनिवार को धनतेरस के बाद बाजारों में दीवाली की धूम व पटाखे, मिठाई, लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा, मिट्टी के दीपक के अलावा इलेक्ट्रानिक विद्युत बल्बों व झालरों से पूरा बाजार पटा रहा। जबकि शहर के विभिन्न चौक चौराहों पर पटसन के संठी से बना हुक्का पाती की बिक्री तेजी से हुई। शनिवार को शहर के प्रमुख चौक चौराहों में से एमजी रोड, डॉ. आरपी पथ, न्यू मार्केट, मंगल बाजार, फलपट्टी, बड़ा बाजार, गर्ल्सस्कूल रोड, गोलछा कटरा, विनोदपुर रोड, शहीद चौक, ओवर ब्रिज के अलावा मिरचाईबाड़ी की सड़कों पर दीपावली के अवसर पर प्रयोग किये जानेवाले सामग्रियों से पूरा पथ पटा हुआ था
कालीबाड़ी में श्रद्धालुओं की मन्नते होती है पूरी
शहर के अस्पताल रोड राजहाता के समीप बनी भव्य व आकर्षक काली मंदिर जिसे कालीबाड़ी के नाम से जाना जाता है में पूजा अर्चना करनेवाले श्रद्धालुओं की हर मन्नतें पूरी होती है। बताया जाता है कि इस मंदिर में विगत दो सौ वर्षों से तांत्रिक प्रणाली से पूजा अर्चना की जाती है। शहर के विकसित होने के पहले उकत स्थल के समीप कोसी नदी की धारा प्रवाहित होती थी। जहां नेपाल, भुटान सहित अन्य प्रमंडलों से तांत्रिक आकर तंत्र साधना करते थे तथा मां की कृपा से समस्त सिद्धियों को प्राप्त करते थे। प्राचीन काल में यह सथल बहुत डरावना होता था। नदी की धारा बदलने एवं शहर का विकास होने के बाद यहां पर बंगाली एवं बिहारी संस्कृति के मिश्रित वातावरण होने के कारण उक्त स्थल कालीबाड़ी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार को हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। खासकर काली पूजा के अवसर पर मन्नतें पूरी होने के बाद मंदिर प्रांगण में पशु बली दी जाती है। दीपावली को लेकर अभी से इस मंदिर में चहल पहल बढ़ने लगी है।
स्रोत-हिन्दुस्तान