ध्यान अध्यात्म की सबसे ऊंची विद्या : हरिनंदन बाबा
कटिहार। गामी टोला स्थित सत्संग मंदिर में 10 दिवसीय ध्यान साधना शिविर 18 सितंबर से प्रारंभ हुआ। कुप्पाघाट भागलपुर से आए महर्षि हरिनंदन बाबा ने इस अवसर पर ध्यान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ध्यान अध्यात्म की सबसे ऊंची विधा है जबकि बाहरी पूजा पाठ तीर्थ यात्रा आदि शिशु शाला है। गीता को उद्धृत करते हुए कहा कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि एक मुहूर्त भी कोई अपने चित्त को पूर्ण चिंतन रहित करने में सफल हो जाता है तो वह 100 वर्ष की पूजा से अधिक महत्वपूर्ण है। इसमें किसी तरह का कोई खर्च भी नहीं लगता। महर्षि ने बताया कि ध्यान से एकाग्रता आती है और मन की अशांति, चिंताएं समाप्त हो जाती है । मनोवृति के सिमटाव होने से अपने अंदर दिव्य अनुभव की प्राप्ति होती है। समाधि में जीव का परमात्मा से मिलन होता है। व्यवहारिक जीवन में ध्यान करने वाले अपने मनोबेग को नियंत्रण में रखते हैं जिसके कारण विपरीत परिस्थिति में भी आम लोगों के साथ सहज व्यवहार करते हैं। ध्यान से ब्लड प्रेशर, शूगर, हृदय आघात आदि बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है। ध्यान की विधा अध्यात्म में प्रारंभिक काल से ही है। उन्होंने नियमित रूप से प्रातः और सायंकाल में ध्यान करने की आवश्यकता जतायी। इस अवसर पर अरुण अग्रवाल, निर्मल डालमिया, पृथ्वी चंद्र महतो, विशेश्वर भगत, कमल रामुका, त्रिलोक चंद्र अग्रवाल, ओमप्रकाश साह, शंकर यादव, प्रवीण नारायण, सत्य प्रकाश बाबा, शिवानंद बाबा, रमेश बाबा ,बुद्धिनाथ बाबा, अमरेश सिंह, ध्रुव मांझी, राजेंद्र जी आदि उपस्थित थे।