अररिया के फुलकाहा में सीमावर्ती क्षेत्र में ढलने लगी सुकरतिया मनाने की परंपरा
अनूठे पर्व त्योहारों के लिए विख्यात कोशी से सटे सीमावर्ती इलाकों में सुकरतिया पर्व की परंपरा विलुप्त हो रही है। हालांकि गोधन संरक्षण के लिये सदियों से आयोजित हो रही गोवर्धन पूजा इस वर्ष भी श्रद्धापूर्वक संपन्न हुई। जंगलों से भरे पूरे और 95 प्रतिशत कृषि आधारित जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में दुधारू पशु अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार रहे हैं।
पशुओं के संरक्षण और पशुधन को महत्व देने के लिये इस क्षेत्र में गोवर्धन पूजा का आयोजन होता रहा है। इसके साथ ही सुकरतिया नामक एक अनूठा पर्व भी यहां के गांव में आयोजित किया जाता है। जंगलों के कटते जाने और मवेशियों की संख्या में लगातार ह्वास का असर सुकरतिया पर्व पर स्पष्ट रूप से पड़ा है। बड़े बुजुर्गों के अनुसार सुकरतिया पर्व पर मवेशियों को जंगली जानवरों से लड़ने के लिए निडर और ढ़ीढ़ बनाने के लिए किया जाता था। इसमें गांव भर के दुधारू भैंसे वैसे जंगल के आसपास एक खुली स्थान पर इकट्ठा होती थी। इससे पहले गांव के किसान अपनी गायों,बैल तथा भैंसों को नई एवं रंगीन डोरी तथा अन्य चीजों से सजा देते लेते थे। मवेशियों को पखेवा का शक्ति वर्धक पेय पिलाया जाता था तथा गायों को दुबधान से चूमा कर पूजा की जाती थी। बाद में इकट्ठा भैंसों के बीच एक नर सूअर को लाकर छोड़ दिया जाता था। ज्योंही सूअर भैंसों पर आक्रमण कर उनके बीच से रास्ता बनाने का प्रयास करता भैंसे अपनी पैनी सींघ से उस पर प्रहार करती।
स्रोत-हिन्दुस्तान