कामरूप कामाख्या से पिंडा लाकर मां भगवती को किया था स्थापित
प्रमंडल का अति प्राचीन विशाल त्रिकोण शक्ति पीठ मां भगवती काली मंदिर सलेमपुर डेढ़ सौ वर्ष पुराना है।
1870 में गांव के मदन झा ने कामारूप कामाख्या से पिंडा लाकर मां भगवती काली मंदिर सलेमपुर समेली की स्थापना की थी। गांव के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा स्थापना कालवधि पर वैदिक तांत्रिक पद्वति से पूजा अर्चना की जाती है। बीस वर्षों से भगवती काली समिति द्वारा विश्व कल्याण के लिए सवा लाख शताब्दी दुर्गा सप्तशती पाठ एवं नवार्ण मंत्र जाप आदि कर्म वैदिक विद्वान चंद्रनाथ मिश्र, बौसी संस्कृत विद्यापीठ के आचार्य समूह द्वारा कराया जाता है। विशाल मंदिर की महत्ता को सीए एवं मिथिलांचल वासियों के लिए अनूठी एवं शक्तिशाली शक्तिपीठ मानी जाती है। यहां मां को पाठा की बलि चढ़ाई जाती है। चुनरी चढ़ाया जाता है। रांची के अभियंता मुरलीधर द्वारा देश का दूसरा विशाल मंदिर के नक्शे पर मंदिर का निर्माण बीस वर्षों से ग्रामीणों के सहयोग से अब तक कराया जा रहा है। भोगेन्द्र झा, ललिता आचार्य, प्रो वंशीधर झा, हीरानंद झा संचालन कमेटी के द्वारा पूरी निष्ठाभाव से मंदिर की पूजा अर्चना करायी जाती है। ग्रामीणों ने बताया कि मन्नते पूरी होने की लम्बी फेहरिस्त है। इनकी महिमा निराली एवं अपरंपार है। मंदिर का स्थापना गांव के त्रिकोणीय भाग में स्थापना की गई जो कि पवित्र स्थल माना जाता है। गांव के वैष्णो देवी मंदिर, ब्रह्मबाबा स्थान प्रसिद्ध है।
स्रोत-हिन्दुस्तान