न सजावट और न ही कोई पूजारी फिर भी होती है मां काली की पूजा
कोई सजावट न कोई धुमधाम न कोई पूजारी फिर भी दीपावली की रात से होती है पूजा । लगभग 71 वर्षों से मां काली सबकी मनोकामना पूरी करती है। पूर्णिया पूर्व प्रखंड के बैलोरी सोनाली सड़क के किनारे बसा महेन्दपुर के काली मंदिर की महिमा निराली है । एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे छोटा सा मंदिर में मां निवास करती हैं। यहां पीपल के पेड़ में अद्भुत नजारा देखने को मिलता हैं। पीपल पेड़ का हर एक ठहनी मे काली का रूप दिखाता हैं। महेन्दपुर के इस काली मंदिर की आस्था सिर्फ हिन्दुओं में नहीं है बल्कि मुस्लिम श्रद्धालुओं की भी इसमें आस्था है। यहां बलि प्रथा का प्रचलन है। बलि प्रथा नवरात्रि के समय बंद रहता है बांकि सभी दिन बलि चढ़ायी जाती है। दिपावली की सुबह कोसी-सिमांचल, पड़ोसी राज्य बंगाल एवं पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मन्नते पूरा होने पर चढ़ावा देने पहुंचते है। समय के अनुसार मंदिर का भव्य निर्माण होना चाहिए। वो नहीं हो सका है। स्थानीय लोग कहते हैं कि मां काली का मंदिर बनाना हमारे बस की बात नहीं है। मां खुद तय करती है वे कैसे घर में रहेगी। वे अपने भक्तों को स्वपन दे कर बताती है। ज्ञात हो सन 1980 के आसपास पूर्णिया पूर्व में अमीन के पद पर सिवान निवासी अशोक कुमार पांडेय पदास्थापित हुए थे।और उन्हीं को स्वपन दिया था। तब जाकर मंदिर का निर्माण हुआ था। मां अपने भक्तों को समय समय पर स्वपन भी दिया करते है। परिसर में भव्य दुर्गा मंदिर का निर्माण हो चुका है । इस मंदिर मे सेवायत के दौर पर पास के ही मंगनी देवी माता की सेवा करती है। जबकि मंदिर कमेटी में युवा वर्ग के साथ साथ बुजुर्ग भी अपनी जिम्मेदारी बखुबी निभाते हैं। वहीं पंचायत के मुखिया रामस्वरूप रजवाड़ ने बताया कि काली की महिमा अपरंपार है। दीपावली दिन से लेकर छठ तक श्रद्धालुओं की भीड़ लगी
स्रोत-हिन्दुस्तान