अतिक्रमण की चपेट में सरकारी पोखर
कभी मुख्यालय की जीवन रेखा माने जाने वाला मेला ग्राउंड स्थित सरकारी पोखर आज पूरी तरह अतिक्रमणकारियों की चपेट में आकर बदहाली के कगार पर है। तालाब के चारों ओर जहां अतिक्रमणकारियों ने छोटे-छोटे घर बनाकर इसके आकार को छोटा कर दिया है। बाजार के सारे कूड़े-कचरे भी इसी पोखर में डाले जा रहे हैं। स्थिति यह है कि पोखर के बदबूदार पानी और कूड़े-कचरे के दुर्गंध से आम लोगों का जीवन नरक बना हुआ है। जानकार बताते हैं कि कहने को यह पोखर सरकारी है लेकिन वर्तमान समय में सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन हरियाली के लिए यह पोखर कोढ़ साबित हो रहा है। बताते हैं कि पहले सरकारी स्तर से इसकी उड़ाही भी होती थी और मछली पालन के लिए तालाब की बंदोबस्ती भी राजस्व विभाग की ओर से की जाती थी। लेकिन वह बीते दिनों की बात हो गई। तालाब के चारों ओर बिखरी गंदगी के बीच आवारा सुअरों के विचरण, दुकानदारों द्वारा फेंके गए कूड़ा कचरा और सड़े आलू से भरे यह सरकारी पोखर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए किसी उद्धारक की बाट जोह रहा है।आस्था का केन्द्र था तालाब: स्थानीय नत्थू चौखानी, राम प्रसाद साह, सज्जन कुमार संत, मनीष अग्रवाल, सहदेव यादव, दीपक अग्रवाल आदि बताते हैं कि तालाब हर धर्म के लोगों का आस्था का केंद्र बना हुआ था। मुसलमान जहां नमाज से पहले वजू करते थे तो हिन्दू धर्म के अनुयाई छठ, मुंडन संस्कार, श्राद्ध कर्म विधि इसी पोखर के महाड़ पर करते थे। लेकिन सरकार की अनदेखी ने कभी लोगों के पानी के स्रोत रहे इस तालाब को श्मशान जैसा बना दिया है। जानकार बताते हैं कि अब तो पशु भी इस पोखर के जहरीले पानी को नहीं पीते हैं।
स्रोत-हिन्दुस्तान