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क्या है EOS-08 मिशन? ISRO ने किया लॉन्च, जानें क्या है इसकी खासियत? आपदा में होगा मददगार

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क्या है EOS-08 मिशन? ISRO ने किया लॉन्च, जानें क्या है इसकी खासियत? आपदा में होगा मददगार

 इसरो ने श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से नया मिशन लॉन्च कर दिया है। EOS-08 मिशन इसरो के लिए बेहद खास है। आइए जानते हैं इस मिशन की क्या खासियत हैं?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का सबसे चर्चित मिशन EOS-08 मिशन लॉन्च हो चुका है। इसे श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से आज यानी शुक्रवार की सुबह 9:19 मिनट पर लॉन्च किया गया। यह एक अर्थ ऑब्जरवेशन सेटेलाइट है, जिसे SSLV D3 के जरिए लॉन्च किया गया है। तो आइए जानते हैं कि इसरो का यह मिशन आखिर क्या है और इसकी खासियतें क्या हैं?

EOS-08 मिशन का मकसद

EOS-08 मिशन का मतलब है अर्थ ऑब्जरवेशन सेटेलाइट (EOS), जैसा नाम से पता चलता है EOS-08 अतंरिक्ष से धरती पर नजर रखेगा। ये सेटेलाइट पर्यावरण और आपदा से जुड़ी जानकारी धरती पर भेजेगी। इससे आपदा आने से पहले वैज्ञानिकों को अंदेशा मिल जाएगा। ज्वालामुखी फटने से लेकर बाढ़ आने और महासागर में चक्रवात उठने का पता पहले से लगाया जा सकता है। इसरो का मानना है कि EOS-08 मिशन सफल होने के बाद कई बड़ी आपदाओं से बचा जा सकता है। यह सेटेलाइट स्पेस से मिट्टी की नमी, रिमोट सेंसर और हवा पर ध्यान रखेगी।

तीन पेलोड रखेंगे नजर

EOS-08 मिशन में तीन अत्याधुनिक पेलोड मौजूद हैं। इस लिस्ट में इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इन्फ्रारेड पेलोड (EOIR), ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम-रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (GNSS-R) और एसआईसी यूवी डोसिमीटर का नाम शामिल है। यह तीनों पेलोड ना सिर्फ दिन में बल्कि रात के अंधेरे में भी धरती की तस्वीरें खींच कर इसरो को भेजने में सक्षम हैं। इससे किसी बड़ी अनहोनी को टाला जा सकता है, साथ ही आपदा से पहले लोगों को आगाह करने में आसानी होगी।

 

1 साल का होगा मिशन

EOS-08 मिशन की समयसीमा 1 साल होगी। यह मिशन एक साल तक धरती की सारी जरूरी जानकारियां इसरो को भेजेगा। इससे वैज्ञानिकों को धरती के बारे में काफी कुछ नया जानने का मौका मिलेगा। यही वजह है कि EOS-08 मिशन को लेकर इसरो काफी उत्सुक है।

एक तीर से दो निशाने

EOS-08 मिशन सफल होने के बाद SSLV D3 को ऑपरेशन रॉकेट का दर्जा मिल जाएगा। इससे पहले SSLV D1 ने EOS-02 मिशन को अंतरिक्ष में स्थापित किया था। बता दें कि SSLV श्रेणी के रॉकेट की कुल लगात PSLV से लगभग छह गुना कम है। ऐसे में अगर SSLV D3 सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचता है, तो यह इसरो के लिए डबल सक्सेस साबित होगी।

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