
सुप्रीम कोर्ट ने आज उन याचिकाओं पर फैसला सुना दिया जिनमें इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को चुनौती दी गई थी
चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी गुरुवार को फैसला सुना दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो आज सुनाया जाएगा। इस रिपोर्ट में जानिए कि चुनावी बॉन्ड क्या होते हैं और इसके खिलाफ क्या-क्या तर्क दिया गए हैं।
क्या होते हैं चुनावी बॉन्ड
चुनावी बॉन्ड एक ऐसा सिस्टम है जिसके माध्यम से बिना अपनी पहचान जाहिर किए कोई शख्स किसी राजनीतिक दल को फंड दे सकता है। चुनावी बॉन्ड को भारत में कोई व्यक्ति या कंपनी खरीद सकती है। इन्हें खास तौर पर राजनीतिक दलों को पैसा देने के लिए ही जारी किया जाता है। इन्हें भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जारी करता है और ये 1000, 10000, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपये के मल्टिपल में बेचे जाते हैं।
इस योजना के तहत डोनेशन पर 100 प्रतिशत टैक्स छूट मिलती है और पैसा देने वाले की पहचान भी गुप्त रखी जाती है। न बैंक और न ही राजनीतिक दल दान देने वाले शख्स की पहचान जाहिर कर सकते हैं। इस योजना का पहली बार ऐलान पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 के बजट सत्र के दौरान की थी। जनवरी 2018 में इसे कानून में संशोधन करते हुए राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में अधिसूचित किया गया था।
क्यों किया जा रहा विरोध
सुप्रीम कोर्ट में इस योजना के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं। याचिकाएं दाखिल करने वालों में सीपीआई (एम) और कुछ एनजीओ शामिल हैं। इनमें चुनावी बॉन्ड योजना की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि इस मामले में सुनवाई की शुरुआत पिछले साल 31 अक्टूबर को हुई थी। बता दें कि इन याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि इस योजना से देश के लिए खतरे की स्थिति बन सकती है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है, शेल कंपनियों के लिए रास्ता तैयार करती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल कह चुके हैं कि कोई राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड से मिला पैसा चुनाव के अलावा किसी अन्य कार्यों में भी खर्च कर सकते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार का इसे लेकर कहना है कि यह योजना पूरी तरह से पारदर्शी है।