आज देश में नेता भी हैं, नीतियां भी हैं कमी हैं तो बस नियत की।आज देश में न अन्न संकट हैं,न रक्षा साधनों की कमी हैं,यहाँ सिर्फ चरित्र संकट हैं।आज लोंगो को मूलभूत सुविधाओं में सबसे पहले मजदूरों का पलायन रोकना होगा।
उसे अपने ही राज्य तथा क्षेत्र में रोजी-रोजगार देना होगा।तभी दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पायेगा।स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार यहां की मूल समस्या हैं।
आज़ादी के बाद देश मे भ्रष्टाचार इस कदर फैला कि मानो हमें अंग्रेजी राज से नहीं बल्कि घोटाला करने की आजादी मिल गई हैं।कही हिन्दू हित, कही मुस्लिम हित, कही दलित हित, कही अगड़े तो कही पिछड़े हित की बात करने वाले हमारे राजनेता सही मायने में भारतीय लोकतंत्र और समाज के पतन के जिम्मेदार हैं।बहरहाल जनता को यह सोचना होगा कि अच्छी बातें करने से कुछ बदलने वाला नहीं है।अगर वास्तव में बदलाव लाना हैं तो जाति और धर्म से ऊपर उठकर अच्छे लोंगो को सपोर्ट करना होगा।राजनीति को अपराध मुक्त करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट चाहे जितना भी प्रयास करले,लेकिन जनता जब तक ऐसे लोंगो का चयन करना बंद नहीं करेंगी, तब तक स्वच्छ राजनीत की बात करना केबल कोरी कल्पना ही होगी। माननीयों को भी सोचना होगा कि धनबल बाहुबल से जीत व सत्ता तो मिल सकती हैं, लेकिन उनके जैसा बनने के लिए उनके आदर्शों को अपनाना होगा।जो थोड़ा मुश्किल तो है पर असम्भव नहीं। आज भी जिला,अनुमंडल और प्रखंड मुख्यालय से लेकर सुदूर के कई गांवो में सड़क,बिजली,स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है।उस क्षेत्र का विकास कर वहाँ बुनियादी सुविधाओं का प्रबंध करना अनिवार्य है।पंचायत राज व्यवस्था लागू करने वाले संविधान विदों और राजनेताओं ने सोचा भी नहीं होगा कि इतनी अच्छी व्यवस्था लागू करने के बाद भी पंचायतों में सामाजिक संकट खड़ा हो जाएगा।पंचायत के काम काज के तौर तरीकों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है और समाज में कटुता बढ़ी हैं और समाज की सलाहियत,भाईचारा और आपसी प्रेम पूरी तरह छिन्न-भिन्न होने लगा हैं।बीबी भए कोतवाल तो अब डर काहे का की तर्ज पर उन वार्ड सदस्यों,प्रतिनिधियों की तो चाँदी कट रही हैं जिसके बीबी वार्ड सदस्य तथा प्रतिनिधि हैं।नाम लिया जा रहा है बीबी का और काम संभाल रहे है शौहर।वाह रे पंचायत राज व्यवस्था।गऱीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने बालो के लिए बनने वाली सूची को बनाने में पंचायत के कर्ताधर्ता और सरकार के बेलगाम व बेइमान अफ़सर। ने इतनी अनियमितता कि इसे लेकर आम लोंगो का आक्रोश दिन-प्रतिदिन बढता ही जा रहा हैं।आवास योजना के निर्माण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है।एक-एक व्यक्ति को दो-दो गलत नामों का लाभार्थी बन पैसा हजम कर गए।कई लोगों ने तो भवन की नींव भी नहीं रखी हैं।कई पक्का मकान वाले भी इसका लाभ ले चुके है। सरकार के द्वारा चलाए जा रहे जन कल्याण कार्यक्रम सड़क निर्माण,सोलर लाइट,मनरेगा,राशनकार्ड और अब जल-नल योजना में पंचायत में बड़े पैमाने पर घपले-घोटाले किए गए हैं।इसमे कमीशन खोरी की बात भी जग ज़ाहिर हैं।सभी पंचायतों में विकास योजनाओं पर कमीशन तंत्र हावी हैं। भारत में लोकतंत्र का अर्थ लोकनियुक्ततंत्र बन गया है।जबकि इसे लोक नियंत्रित तंत्र होना चाहिए था।संबिधान द्वारा तंत्र संरक्षक की भूमिका में स्थापित हैं, जबकि उसे प्रबंधक की भूमिका में होना चाहिए था।जाहिर है कि संरक्षक लगातार शक्तिशाली होता चला गया और धीरे-धीरे समाज को गुलाम समझने लगा।तंत्र आदेश देता है और लोक पालन करता हैं।लोक और तंत्र के बीच की दूरी बढ़ती जा रही हैं।इस बीच की दूरी को कम करने के लिए ग्राम सभा को मजबूत करना ही एक मात्र उपाय हैं।निष्क्रिय ग्राम सभा में जान फूंकने की जरूरत हैं। वैसे आज की राजनीति सिर्फ. आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति बनकर रह गई हैं।जनता के प्रति अपने दायित्व को नेता भूलते जा रहे हैं।अन्याय,अत्याचार, भ्रष्टाचार और अफसरशाही के विरुद्ध मेरी कलम से आवाज़ उठती रहती हैं।ग़रीबो के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाना एवं सभी को सम्मान देना,जनता को मसीहा समझना मैं इसे अपना कर्तव्य मानता हूं।जिंदगी हैं तो ख्वाब हैं,ख्वाब है तो रास्ते है,रास्ते हैं तो मंजिल हैं,मंजिल हैं तो हौसला हैं और हौसला हैं तो विश्वास हैं और यही विश्वास मुझे पत्रकारिता, लेखन एवं समाजसेवा के लिए प्रेरित करता हैं।इस प्रेरणा को अपने जीवन में उतारकर विकास की नई महागाथा लिखने के लिए मैं तैयार हूं।
प्रदीप कुमार नायक स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार